इकाई -1 स्थिर वैद्युतिकी ( Electrostatics )

इकाई -1 स्थिर वैद्युतिकी ( Electrostatics ) 

कूलॉम का नियम तथा वैद्युत क्षेत्र ( Coulomb's Law and Electric Field )
पाठ्यक्रमः वैद्युत आवेश , आवेश का संरक्षण , कूलॉम का नियम , दो बिन्दु आवेशों के बीच बल , बहुल आवेशों के बीच वल , अध्यारोपण सिद्धान्त तथा सतत आवेश वितरण । वैद्युत क्षेत्र . वैद्युत आवेश के कारण वैद्युत क्षेत्र , वैद्युत क्षेत्र - रेखाएँ , वैद्युत विभुत , द्विषुव के कारण वैद्युत क्षेत्र , एकसमान वैद्युत क्षेत्र में विद्युत पर बल - आघूर्ण ।

1. वैद्युत आवेश ( Electric Charge )
अब से लगभग 2500 वर्ष पहले एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक थेल्स ने देखा कि जब पदार्थ को ऊन से रगड़ा जाता है तो उसमें हल्की वस्तुओं जैसे , कागज के टुकड़े , तिनके , इत्यादि को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण आ जाता है । परन्तु लगभग 2000 वर्षों तक इस बात को कोई महत्त्व नहीं दिया गया । सन् 1600 में इंग्लैण्ड के डॉ . गिलबर्ट ने प्रयोगों द्वारा पता लगाया कि अम्बर की भाँति अनेक अन्य पदार्थ जैसे काँच , आबनूस , गन्धक , लाख , इत्यादि भी रगड़े जाने पर हल्की वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करने लगते हैं । स्पष्ट है कि इन पदार्थों में यह गुण रगड़ने के कारण अर्थात् , घर्षण द्वारा उत्पन्न होता है । इस गुण के प्राप्त कर लेने पर पदार्थ ' वैद्युतमय ' ( electrified ) कहलाते हैं तथा वह कारण जिससे कि उनमें यह गुण उत्पन्न होता है ' वैद्युत ' ( electricity ) कहलाता है । किसी पदार्थ के वैद्युतमय हो जाने पर कहा जाता है कि पदार्थ ने ' आवेश ' ( charge ) ग्रहण कर लिया है । अत : वैद्युतमय पदार्थ को ' आवेशित ' ( charged ) पदार्थ भी कहते हैं ।

मात्रक एवं मापन

2 . धन तथा ऋण - आवेश ( Positive and Negative Charges )
यदि हम काँच की छड़ को रेशम से रगड़ें तो छड़ आवेशित हो जाती है । इसी प्रकार , आबनूस छड़ बिल्ली की खाल से रगड़ी जाने पर आवेशित हो जाती है । परन्तु इन दोनों छड़ों के आवेश एक - दूसरे से भिन्न प्रकार के होते हैं । यदि हम काँच की छड़ को रेशम से रगड़ कर एक डोरे से लटका दें तथा एक दूसरी काँच की छड़ को रेशम से रगड़ कर पहली छड़ के पास लायें तो लटकी हुई छड़ दूर हट जाती है । इसी प्रकार , यदि आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ कर लटका दें तथा दूसरी आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ कर पहली छड़ के पास लायें तो भी लटकी हुई छड़ दूर हट जाती है । परन्तु यदि हम आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ कर लटका दें तथा काँच की छड़ को रेशम से रगड़ कर आबनूस की छड़ के पास लायें तो आबनूस की छड़ , काँच की छड़ की ओर खिंच आती है । इन प्रयोगों से स्पष्ट है कि आवेश दो प्रकार के होते हैं : एक तो वह जो काँच को रेशम से रगड़ने पर काँच में उत्पन्न होता है तथा दूसरा वह जो कि आबनूस को बिल्ली की खाल से रगड़ने पर आबनूस में उत्पन्न होता है । पहले प्रकार के आवेश को ' धन - आवेश ' ( positive charge ) तथा दूसरे प्रकार के आवेश को ' ऋण - आवेश ( negative charge ) कहते हैं । ये नाम अमरीकी वैज्ञानिक फ्रैंकलिन ने सन् 1750 में रखे थे । उपरोक्त प्रयोगों से यह भी स्पष्ट है कि " सजातीय आवेश एक - दूसरे को प्रतिकर्षित ( repel ) करते हैं तथा विजातीय आवेश एक - दूसरे को आकर्षित ( attract ) करते हैं । "

भौतिक राशियों से संबंध

3.धनात्मक तथा ऋणात्मक आवेश - वाहकों की परिकल्पना ( Hypothesis of Positive and Negative Charge - Carriers )
 प्रत्येक पदार्थ अनेक कणों से मिलकर बना होता है । जब दो आवेशित पदार्थ एक - दूसरे को आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित करते हैं तब यह सोचना स्वाभाविक है कि एक पदार्थ के कण दूसरे पदार्थ के कणों को आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित कर रहे है । चूंकि आवेशित पदार्थ दो प्रकार के होते हैं : धन - आवेशित तथा ऋण - आवेशित । अतः हम यह मान सकते हैं कि पदार्थ के कण भी दो प्रकार के होते हैं : धन - आवेशित कण तथा ऋण - आवेशित कण । दो समान आवेश वाले कण एक - दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं तथा विपरीत आवेश वाले कण एक - दूसरे को आकर्षित करते है । जब किसी पदार्थ में धन व ऋण कणों की संख्याएँ बराबर होती हैं तो वे किसी बाह्य कण पर पड़ने वाले एक - दूसरे के प्रभाव को निष्फल कर देते है । अत : वह पदार्थ आवेशहीन ( uncharged ) अथवा विद्युत - उदासीन ( electrically neutral ) होता है । परन्तु यदि हम उस पदार्थ में कुछ धन कणों को प्रवेश करा दें तो अब कुल धन कणों का प्रभाव ऋण कणों के प्रभाव से अधिक होगा तथा हम कहेंगे कि पदार्थ धन - आवेशित हो गया है । यदि हम उस पदार्थ से कुछ ऋण कणों को निकाल लें , तब भी पदार्थ के धन कणों का प्रभाव बढ़ जायेगा तथा पदार्थ धन - आवेशित हो जायेगा । इसी प्रकार , हम किसी विद्युत - उदासीन पदार्थ में कुछ ऋण कण मिलाकर अथवा उसमें से कुछ धन कण निकाल कर उसे ऋण - आवेशित कर सकते हैं ।
हमने देखा कि जब काँच की छड़ को रेशम से रगड़ा जाता है तो छड़ धन - आवेशित हो जाती है । इस प्रक्रिया में दो सम्भावनाएँ है : रगड़ने पर कुछ धन कण रेशम में से काँच में आ जाते हैं अथवा कुछ ऋण कण काँच में से रेशम में चले जाते है । यह स्पष्ट है कि दोनों ही दशाओं में कांच की छड़ के धन - आवेशित होने के साथ - साथ , रेशम ऋण - आवेशित हो जानी चाहिए । अब यदि हम काँच की छड़ को लटका कर उसके समीप रेशम को लायें तो छड़ रेशम की ओर खिंच आती है । इससे यह पता चलता है कि रेशम वास्तव में ऋण - आवेशित हो गई है । अत : हमारी यह परिकल्पना कि पदार्थ धन अथवा ऋण कणों के स्थानान्तरण ( transference ) द्वारा आवेशित होते हैं । ठीक है । इन्हीं कणों को हम ' आवेश - वाहक ' कहते हैं ।

चिन्ह और उनके नाम

4 . इलेक्ट्रॉन सिद्धान्त : इलेक्ट्रॉनों की अधिकता अथवा कमी के कारण ऋण तथा धन वैद्युत आवेश ( Electron Theory : Negative and Positive Electric Charge due to Excess or Deficiency of Electrons )
आवेश - वाहकों की परिकल्पना का आधुनिक रूप ' इलेक्ट्रॉन सिद्धान्त ' है । इस सिद्धान्त के अनुसार , प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं ( atoms ) से मिलकर बना है । प्रत्येक परमाणु में एक बीच का भारी भाग होता है जिसे ' नाभिक ' ( nucleus ) कहते हैं । यह ' प्रोटॉन ' तथा ' न्यूट्रॉन ' नामक कणों से मिलकर बना होता है । प्रोटॉन पर धन - आवेश होता है , जबकि न्यूट्रॉन आवेश - हीन होता है । इस प्रकार , नाभिक धन - आवेशित होता है । नाभिक के चारों ओर एक तीसरे प्रकार के कण विभिन्न कक्षाओं ( orbits ) में चक्कर काटते रहते हैं । इन कणों को ' इलेक्ट्रॉन ' कहते हैं । इलेक्ट्रॉन पर प्रोटॉन के धन - आवेश के बराबर ऋण - आवेश होता है । परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या नाभिक के प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है । अत : परमाणु में धन - आवेश तथा ऋण आवेश की मात्राएँ बराबर होती हैं । इस प्रकार कुल परमाणु विद्युत - उदासीन होता है । जब किसी परमाणु से किसी प्रकार एक अथवा अधिक इलेक्ट्रॉन निकाल देते हैं तो वह परमाणु धनावेशित हो जाता है । इस प्रकार , किसी वस्तु का धनावेशित हो जाना उसके परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की कमी प्रदर्शित करता है । इसके विपरीत , यदि किसी परमाणु को एक अथवा अधिक इलेक्ट्रॉन दे दें तो वह परमाणु ऋणावेशित हो जाता है । स्पष्ट है कि वस्तु का ऋणावेशित होना उसके परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता प्रदर्शित करता है । किसी वस्तु के वैद्युतीकरण के लिये इलेक्ट्रॉन ही उत्तरदायी हैं , न कि प्रोटॉन ( क्योंकि प्रोटॉन को नाभिक से हटाना सुगम नहीं है ) । घर्षण द्वारा आवेशन का स्पष्टीकरण ( Explanation of Charging by Friction ) : जब काँच की छड़ को रेशम से रगड़ते हैं तो काँच के परमाणुओं से कुछ इलेक्ट्रॉन निकल कर रेशम में चले जाते हैं । इससे काँच पर इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाने के कारण धन - आवेश की अधिकता हो जाती है तथा रेशम पर ऋण - आवेश की अधिकता हो जाती है । अत : काँच की छड़ धन आवेशित तथा रेशम ऋण - आवेशित हो जाती है । इसी प्रकार , जब आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ते हैं तो खाल से कुछ इलेक्ट्रॉन आबनूस में आ जाते हैं । अतः आबनूस की छड़ इलेक्ट्रॉनों की अधिकता के कारण ऋण - आवेशित हो जाती है तथा खाल इलेक्ट्रॉनों की कमी के कारण धन - आवेशित हो जाती है ।

भैतिकी जगत

5. वैद्युत आवेश का संरक्षण ( Conservation of Electric Charge )
जब दो वस्तुएँ परस्पर रगड़ी जाती हैं तो दोनों वस्तुओं पर एक साथ ' विपरीत ' वैद्युत आवेश उत्पन्न होते हैं । मापने पर यह देखा जाता है । इन वैद्युत आवेशों की मात्राएँ ठीक एक - दूसरे के बराबर हैं । जब काँच की छड़ को रेशम से रगड़ते हैं तो जितना धन वैद्युत आवेश कांच की पर उत्पन्न होता है , ठीक उतना ही ऋण वैद्युत आवेश रेशम पर उत्पन्न हो जाता है । इसी प्रकार , आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से या पर जितना ऋण वैद्युत आवेश आबनूस की छड़ पर उत्पन्न होता है , ठीक उतना ही धन वैद्युत आवेश बिल्ली की खाल पर उत्पन्न हो जाता है । बात इलेक्ट्रॉन सिद्धान्त से भी स्पष्ट है ) । इस प्रकार , दोनों वस्तुओं पर उत्पन्न वैद्युत आवेश की कुल मात्रा शून्य है । वस्तुओं को रगड़ने से पहले । उन पर कुल वैद्युत आवेश शून्य ही था । इससे यह स्पष्ट है कि वैद्युत आवेश न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सका है । यह ' वैद्युत आवेश - संरक्षण का नियम ' ( law of conservation of electric charge ) कहलाता है । प्रकृति की किसी भी घटना में जहाँ आवेश आदान - प्रदान होता है , इस नियम का उल्लंघन नहीं पाया जाता । वैद्युत आवेश संरक्षण का एक सुन्दर उदाहरण एक इलेक्ट्रॉन तथा एक पॉजिट्रॉन को एक - दूसरे के अत्यन्त समीप लाने पर मिलता । इलेक्ट्रॉन पर ऋण - आवेश होता है तथा पॉजिट्रॉन पर ठीक उतना ही धन - आवेश होता है । इस प्रकार , इन दोनों का कुल वैद्युत आवेश शून्य है । ये एक - दूसरे के अत्यन्त समीप आते हैं तो परस्पर संयोग करके एक - दूसरे का विनाश कर देते हैं तथा इनके स्थान पर दो गामा - फोटॉनी ( का की उत्पत्ति हो जाती है । इस प्रकार , कुल वैद्युत आवेश अब भी शून्य ही रहता है ।

Physics General Knowledge

6. कूलॉम ( Coulomb )
7. मापन की एम ० के ० एस ० ए ० ( MKSA ) पद्धति में ' मोटर ' , ' किलोग्राम ' , ' सेकण्ड ' तथा ' ऐम्पियर ' क्रमश : लम्बाई , द्रव्यमान , समय तथा वैद्युत धारा के ( ' मूल ' ) मात्रक है । ऐम्पियर की परिभाषा दो समान्तर धारावाही तारों के बीच लगने वाले बल के आधार पर दी जाती है : यदि निर्वात् ( अथवा वायु ) में स्थित दो सीधे , लम्बे व समान्तर तारों में , जिनके बीच की दूरी 1 मीटर है , एक ही वैद्युत धारा प्रवाहित करने पर तारों के बीच उनकी प्रति मीटर लम्बाई में 2 x 10⁻⁷ न्यूटन का बल उत्पन्न हो तो उनमें प्रवाहित धारा 1 ऐम्पियर होगी । ऐम्पियर का प्रतीक A है । MRSA पद्धति में वैद्युत आवेश का मात्रक ' कूलॉम ' कहलाता है तथा इसका प्रतीक है । कूलॉम की परिभाषा ऐम्पियर के आधार पर दी जाती है । वास्तव में किसी चालक में से वैद्युत आवेश के प्रवाह की दर को ही वैद्युत धारा कहते हैं ; अर्थात् वैद्युत धारा -
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वैद्युत आवेश वैद्युत आवेश = वैद्युत धारा x समय । समय
अथवा
यदि किसी चालक में 1 ऐम्पियर की वैद्युत धारा 1 सेकण्ड तक प्रवाहित हो तो उस चालक में से गुजरने वाले आवेश की मात्रा 1 कूलॉम होगी ।
 इस प्रकार
  1 कूलाम = 1 ऐम्पियर - सेकण्ड
  1C=1A - s .

अथवा
एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6 x 10⁻¹⁹ कूलॉम ऋण - आवेश होता है । अत : यदि किसी वस्तु में सामान्य अवस्था से एक इलेक्ट्रॉन अधिक हो तो उस पर 1.6 x 10⁻¹⁹' कूलॉम ऋण - आवेश होगा और यदि उसमे एक इलेक्ट्रॉन की कमी है तो उस पर 1.6 x 10⁻¹⁹ ' कूलॉम धन - आवेश होगा । इस प्रकार , किसी वस्तु पर आवेश की मात्रा इलेक्ट्रॉनों की संख्या के रूप में भी व्यक्त की जा सकती है ।

Physics

7. मूल आवेश : आवेश की क्वाण्टम प्रकृति ( Fundamental Charge : Quantum Nature of Charge )
प्रकृति ने हमें आवेश का एक मात्रक ( unit ) प्रदान किया है । यह वह छोटे से छोटा आवेश है जो कि किसी एक आवेशित कण पर हो सकता है । आवेश की इस न्यूनतम मात्रा को e से प्रदर्शित करते हैं । प्रकृति में e से छोटा आवेश नहीं पाया जाता है । यदि हम किसी भी आवेशित वस्तु ( जैसे कोई आवेशित गोली अथवा आवेशित बूंद ) अथवा आवेशित कण ( जैसे इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन , a- कण ) अथवा आयन के आवेश को नापें तो उसका आवेश सदैव ए के पूर्ण गुणज में होगा , जैसे e , 2e, 3e , 4e , ... इत्यादि । किसी भी वस्तु , कण अथवा आयन का आवेश e की भिन्न में ( जैसे 0.7 e अथवा 2.5 e ) कभी नहीं होगा । इससे स्पष्ट है कि वैद्युत आवेश को अनिश्चित रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता । आवेश के इस गुण को ' आवेश का क्वाण्टीकरण ' अथवा ‘ परमाणुकता ' ( quantisation or atomicity of charge ) कहते हैं । आवेश की छोटी से छोटी इकाई e है । अत : आवेश को ' मूल आवेश ' कहते हैं । प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात किया गया है कि e का मान 1.6 x 10⁻¹⁹ ' कूलॉम है । कुछ प्राकृतिक मूल कणों के आवेश इस प्रकार हैं :

 इलेक्ट्रॉन का आवेश =-e
 प्रोटॉन का आवेश = + e
 α-कण का आवेश = + 2e .
 मूल आवेश का मान इतना कम है कि हम दैनिक जीवन में आवेश के क्वाण्टीकरण का अनुभव नहीं करते । एक साधारण 100 वाट के बल्ब के तन्तु में ही एक सेकण्ड में लगभग 3 x 10¹⁸मूल आवेश ( इलेक्ट्रॉन ) एक सिरे से प्रवेश करते हैं तथा इतने ही ( अन्य ) इलेक्ट्रॉन दूसरे सिरे पर निकलते हैं ।


नोट : यह प्रश्न विभिन्न स्रोतों से तथ्य एकत्रित कर बनायीं गयी है | यदि इसमें कोई त्रुटी पायी जाती है तो राहुल मास्टर माइंड संचालक की जिम्मेदारी नहीं होगी ।

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